एक गर्म दोपहर को बेंगलुरु के एक को-वर्किंग स्पेस में मेरी मुलाक़ात 26 साल के एक संस्थापक से हुई। दफ़्तर किसी ग्लैमरस टावर में नहीं था, बल्कि एक छोटे से डोसा शॉप के ऊपर की मंज़िल पर। उनका स्टार्टअप यूनिकॉर्न बनाने का सपना नहीं देख रहा था। उनका मक़सद बस इतना था—एक मोबाइल ऐप, जो मोहल्ले के लोगों को समय पर पानी का टैंकर बुक करने में मदद करे। उन्होंने मुस्कुराकर कहा: “ये छोटी बात लग सकती है, लेकिन यहाँ पानी ही ज़िंदगी है। अगर मैं यह आसान बना दूँ, तो कामयाब हूँ।”

यही है भारत के स्टार्टअप्स की असली तस्वीर। हर बड़े IPO और यूनिकॉर्न हेडलाइन के पीछे असंख्य छोटे-छोटे उद्यम हैं, जो रचनात्मकता से रोज़मर्रा की परेशानियों को हल कर रहे हैं। वे समस्याएँ जो अख़बारों में नहीं छपतीं, लेकिन लाखों ज़िंदगियों को रोज़ प्रभावित करती हैं।


हाइप से आगे: असली भारत

जब अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत के स्टार्टअप्स पर लिखता है, तो ज़्यादातर ध्यान अरबों डॉलर की वैल्यूएशन पर जाता है। लेकिन असली धड़कन कहीं और है।

  • जयपुर में कुछ युवाओं ने पुराने फ़ोन के पार्ट्स से मिट्टी की नमी नापने वाला सस्ता उपकरण बनाया, जिससे किसान सही समय पर सिंचाई कर सकें।
  • गुवाहाटी में महिलाओं की एक टीम ने ऐप बनाया जो घरेलू कामगारों को सीधे परिवारों से जोड़ता है, ताकि बिचौलियों का शोषण ख़त्म हो।
  • पुणे में दो इंजीनियरों ने सोलर पावर्ड इस्त्री मशीन बनाई, जिससे सड़क किनारे कपड़े प्रेस करने वालों को कोयला जलाना न पड़े।

ये यूनिकॉर्न नहीं हैं। लेकिन ये असली समस्या-हल करने वाले हैं।


सीमाएँ ही रचनात्मकता की जननी

सिलिकॉन वैली का मंत्र है—“Move fast and break things.” भारत का मंत्र कुछ और है—“Move carefully and fix things.” क्योंकि यहाँ हर असफलता किसी का पीने का पानी छीन सकती है, किसी की बस यात्रा रोक सकती है, किसी का इलाज टाल सकती है।

यहीं से पैदा होती है असली रचनात्मकता। पूँजी सीमित, इंफ़्रास्ट्रक्चर अधूरा, ग्राहक कई बार स्मार्टफ़ोन तक के बिना। फिर भी उद्यमी रास्ता निकाल लेते हैं।

हैदराबाद का स्टार्टअप Kheyti इसका बेहतरीन उदाहरण है। उन्होंने “ग्रीनहाउस-इन-अ-बॉक्स” बनाया—कम लागत वाला, मॉड्यूलर ग्रीनहाउस जिसे छोटे किसान अपने आँगन में लगा सकते हैं। इससे पैदावार सात गुना तक बढ़ सकती है। बड़ी-बड़ी कंपनियों की नज़र में यह ग्लैमरस नहीं, लेकिन सूखे से जूझ रहे किसान के लिए यह जीवनरेखा है।


रोज़मर्रा की समस्याएँ = स्टार्टअप अवसर

भारत के हर शहर में छोटी-छोटी परेशानियाँ हैं, जो बाहरवालों को नहीं दिखतीं, लेकिन यहाँ जीने वालों के लिए बड़ी चुनौती हैं। इन्हीं दरारों में स्टार्टअप्स रचनात्मकता की गोंद भर रहे हैं।

  • ट्रैफ़िक और सफ़र:
    गुरुग्राम में Shuttl ने ऑफिस जाने वालों के लिए ऐप-बेस्ड साझा बस सेवा शुरू की। यह परफ़ेक्ट मॉडल नहीं था, लेकिन कई सालों तक लोगों ने ऑटो-रिक्शा की अफरातफरी से राहत महसूस की।
  • कचरा और रीसाइक्लिंग:
    इंदौर का Bintix स्टार्टअप घरों को कचरा अलग करने पर क्रेडिट देता है। टेक्नोलॉजी के साथ-साथ व्यवहार बदलने की भी रचनात्मक कोशिश।
  • स्वास्थ्य सेवा:
    बिहार के गाँवों में Ekatra ने सोलर पावर्ड टेलीमेडिसिन कियोस्क बनाए। लोग पास के कियोस्क में जाकर वीडियो पर डॉक्टर से जुड़ते और वहीं दवा की पर्ची ले लेते।
  • महिला सुरक्षा:
    हैदराबाद का MySafetipin ऐप भीड़, रोशनी और पुलिस उपस्थिति का डेटा लेकर असुरक्षित इलाक़ों को मैप करता है। यह महिलाओं के लिए रोज़ का नेविगेशन टूल बन गया।

परंपरा और नवाचार का संगम

भारतीय स्टार्टअप्स की ख़ासियत यह है कि वे परंपरा और आधुनिकता को मिलाते हैं।

जयपुर का Haathigaon ऐप परंपरागत हाथी-पर्यटन को नया रूप देता है—सवारी के बजाय संरक्षण और नैतिक अनुभव।
Okhai में गाँव की महिलाएँ अपने हाथों की कढ़ाई को ऑनलाइन बेचती हैं। पहले यह कला केवल हाट-बाज़ार तक सीमित थी, अब वैश्विक ई-कॉमर्स का हिस्सा है।


सामाजिक उद्यमियों का उदय

हर स्टार्टअप अरबों डॉलर नहीं चाहता। कई उद्यमी प्रभाव चाहते हैं।

  • अरुणाचलम मुरुगनाथम (“पैड मैन”) ने कम लागत वाली सैनिटरी नैपकिन मशीन बनाई, जिससे ग्रामीण महिलाएँ खुद उत्पादन कर सकें।
  • Selco Solar ने दशकों से गाँवों को सोलर बिजली से रोशन किया, तब जब “क्लाइमेट टेक” शब्द फैशन में भी नहीं था।
  • Swayam Shikshan Prayog महाराष्ट्र की महिलाओं को स्वास्थ्य और स्वच्छ ऊर्जा के छोटे उद्यम चलाने की ट्रेनिंग देता है।

ये लोग ट्रेंडिंग ट्वीट्स नहीं बटोरते, लेकिन इनकी रचनात्मकता लाखों ज़िंदगियाँ बदल रही है।


युवाओं की ऊर्जा, छोटे दलों की ताक़त

दिल्ली या चेन्नई के किसी भी को-वर्किंग स्पेस में जाइए—20-25 साल के युवा लैपटॉप पर झुके हुए, दीवारों पर चिपके पोस्ट-इट, आधे ख़ाली चाय के कप। यही दृश्य है।

ये कॉर्पोरेट टाइटन्स नहीं दिखते। लेकिन इनके पास एक जिद है—“सरकार नहीं सुधारेगी, बड़ी कंपनियाँ नहीं सुधारेगीं, तो हम क्यों नहीं?”

अक्सर यही सोच काफ़ी होती है। तीन लोगों की टीम बस-टिकटिंग ऐप नया बना देती है। कॉलेज दोस्तों का ग्रुप बिजली के बिना वैक्सीन ठंडी रखने का उपाय बना देता है।


टेक्नोलॉजी: बराबरी का साधन

सस्ते स्मार्टफ़ोन और डेटा (धन्यवाद जियो) ने खेल ही बदल दिया।

  • किसान व्हाट्सऐप पर कीट नियंत्रण की टिप्स साझा करते हैं।
  • मछुआरे जीपीएस ऐप से समुद्र में सुरक्षित समय देखते हैं।
  • दुकानदार क्यूआर कोड से भुगतान लेते हैं।

स्टार्टअप्स ने इन्हीं पर कल्पना का रंग चढ़ाया। Udaan ने होलसेलरों को ऐप पर लाया। Meesho ने टियर-3 शहरों की गृहिणियों को मोबाइल से ही रीसेलिंग बिज़नेस दिया।


वैश्विक प्रतिध्वनि

दिलचस्प यह है कि कई भारतीय समाधान दुनिया को प्रेरित कर रहे हैं।

  • Greenhouse-in-a-Box अफ्रीका में अपनाया जा रहा है।
  • मोबाइल आधारित माइक्रोक्रेडिट मॉडल ने लैटिन अमेरिका की फिनटेक्स को प्रभावित किया।
  • कोविड-19 में भारत की कम लागत वाली डायग्नोस्टिक किट्स की वैश्विक तारीफ़ हुई।

यानी भारत की रोज़मर्रा समस्याओं को हल करना सिर्फ़ स्थानीय नहीं, सार्वभौमिक भी है।


चुनौतियाँ

बेशक रास्ता आसान नहीं है।

चुनौतीअसरउदाहरण
फ़ंडिंग बायसलोकल सॉल्यूशंस को कम पैसाइंदौर का कचरा स्टार्टअप फंड से वंचित
नीति की देरीनए विचारों को रोकेहेल्थ-टेक ऐप्स रेग्युलेशन अटके
सर्वाइवल क्राइसिसपैसे की कमी से बंदकई गाँव-आधारित उद्यमी

फिर भी इन्हें जीवित रखती है कम्युनिटी—स्थानीय निवेशक, एनजीओ, और कई बार ग्राहक खुद।


भारतीय सोच का अंतर

भारतीय स्टार्टअप्स की ताक़त टेक्नोलॉजी नहीं, मानसिकता है। वहाँ दीवार दिखती है, यहाँ दरार में भी संभावना दिखती है। अनुमति का इंतज़ार नहीं। अधूरे साधनों में भी काम शुरू करना।

यही है जुगाड़, यही है डिज़ाइन थिंकिंग, यही है उम्मीद।


अंतिम सोच

भारत में हर स्टार्टअप कहानी एक झुंझलाहट से शुरू होती है। कोई टूटी व्यवस्था, कोई रोज़ की असुविधा, कोई गैप जिसे सब जानते हैं लेकिन कोई भरता नहीं। और वहीं कोई युवा कहता है: “क्यों नहीं मैं?”

यही चिंगारी हज़ारों छोटे-छोटे अलाव जला रही है। सब यूनिकॉर्न नहीं बनेंगे। कई बुझ जाएँगे। लेकिन मिलकर वे एक बड़े बदलाव को रोशन कर रहे हैं—एक ऐसी संस्कृति, जिसमें रचनात्मकता सीधे लोगों की ज़िंदगी से जुड़ी है।

दुनिया अरबों डॉलर के IPO गिनती रहेगी। लेकिन असली भारतीय कहानी है—गुवाहाटी की लड़की जिसने घरेलू कामगारों के लिए ऐप बनाया। पुणे के इंजीनियर जिन्होंने प्रेस वालों को सोलर इस्त्री दी। तेलंगाना का किसान जिसने जुगाड़ वाले ग्रीनहाउस से पैदावार दोगुनी की।

ये परीकथाएँ नहीं हैं। ये भारत के उद्यमशील पुनर्जागरण की असली तस्वीर हैं। रचनात्मकता—ज़िंदगी को सरल और बेहतर बनाने की।

By अवंती कुलकर्णी

अवंती कुलकर्णी — इंडिया लाइव की फीचर राइटर और संपादकीय प्रोड्यूसर। वह इनोवेशन और स्टार्टअप्स, फ़ाइनेंस, स्पोर्ट्स कल्चर और एडवेंचर ट्रैवल पर गहरी, मानवीय रिपोर्टिंग करती हैं। अवंती की पहचान डेटा और मैदान से जुटाई आवाज़ों को जोड़कर लंबी, पढ़ने लायक कहानियाँ लिखने में है—स्पीति की पगडंडियों से लेकर मेघालय की गुफ़ाओं और क्षेत्रीय क्रिकेट लीगों तक। बेंगलुरु में रहती हैं, हिंदी और अंग्रेज़ी—दोनों में लिखती हैं, और मानती हैं: “हेडलाइन से आगे की कहानी ही सच में मायने रखती है।”